शुक्रवार, जनवरी 11, 2013

कितना जायज था राजपथ पर ‘लाठी चार्ज’


   ब्लॉग पर प्रकाशित इस लेख के लेखक सूरज सिंह हैं। ये विचार निहायत उनके अपने हैं।
लाठी चार्ज सुनने में अजीब बिलकुल नहीं लगेगा। आज के दौर में हर कोई इस शब्द को भली भांति समझता होगा। दरअसल, समाज में बिगड़ते माहौल और उपद्रवियों को शांत करने के लिए सुरक्षाबल इसका प्रयोग करता है। देशभर में कई मुद्दों पर होते लाठी चार्ज की घटनाओं को हम खबरों में देखते-पढ़ते और सुनते हैं। लेकिन, उसका उतना फर्क नहीं पड़ता, जितना फर्क राजपथ पर हुए लाठी चार्ज का देशवासियों पर पड़ा है। भई, ऐसा हो भी क्यों न.. भारत की राजधानी और उसमें भी सबसे वीआईपी जोन, राजपथ पर हुए लाठी चार्ज की गूंज न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों तक में सुनाई दी थी। वसंत विहार में 16 दिसंबर की रात चलती बस में एक पैरामेडीकल की छात्रा के साथ छह दरिंदों बलात्कार कर दिया। बात केवल इतनी ही नहीं रही। घटना को अंजाम देने वाले उन हैवानों ने पीड़िता के शरीर को ऐसी-ऐसी तकलीफें भी दी, जिनका जिक्र हम नहीं कर सकते। उसके बाद दरिंदों ने उस लड़की और उसके दोस्त को चलती बस से फेंक कर फरार हो गए। घटना की सूचना जैसे-जैसे मीडिया को लगी। देश भर में इसके खिलाफ आवाजें उठने लगीं। इस दिल दहलाने वाली खबर को सुनने के बाद हर किसी के जहन में गुस्सा तब और भर आया, जब यह पता लगा कि  इस घटना में कहीं न कहीं दिल्ली पुलिस का भी दोष रहा है। फिर क्या था, हर कोई दिल्ली पुलिस और सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए। गुस्साए लोगों ने न सिर्फ दिल्ली पुलिस के खिलाफ आवाजे बुलंद की, बल्कि उन्होंने इसके लिए राजधानी की प्रदेश सरकार को भी दोषी ठहराया।
देशभर में घटना के विरोध में धरना-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। राजधानी दिल्ली में इसका खासा असर देखने को मिला। लोगों ने मुद्दे को सोशल नेटवर्किंग साइट के माध्यम से उछाला। पीड़िता को इंसाफ दिलाने के लिए लोगों ने दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। देश-विदेश के मीडिया द्वारा हो रही कवरेज के चलते प्रदर्शन दिन-प्रतिदिन और उग्र होता चला गया। प्रदर्शनों के इस दौर में एक दिन तो हजारों की तादात में लोगों ने राष्ट्रपति भवन की और रुख कर दिया। नार्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक पर जमा हुई भीड़ को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली पुलिस के जवान सहित रेपिड एक्शन फोर्स भी मौके पर मुस्तैद हो गई। बैरिकेट्स लगाकर भीड़ को उस दिन वहीं थाम लिया गया। हालांकि, इस दिन भी बीच-बीच में उग्र हो रहे विरोध काबू में करने के लिए पुलिस ने कई बार आंसू गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया था।
अगले दिन सुरक्षा के लिहाज से दिल्ली पुलिस ने शांतिपूर्वक विरोध जाहिर करने के लिए प्रदर्शनकारियों को इंडिया गेट परिसर में इजाजत दे दी। लेकिन, इंतजाम इतने मजबूत थे कि इस बार कोई भी राष्ट्रपति भवन की ओर रुख न कर सके। इस दिन दिल्ली पुलिस के ऐहतियातन रेपिड एक्शन फोर्स और सीआरपीएफ के जवानों को इंडिया गेट परिसर पर इस कदर मुस्तैद कर दिया कि परिंदा भी राष्ट्रपति भवन की और पर नहीं मार सकता था। मैं और मेरे सहयोगी अरुण कुमार पांडेय इस दिन भी मौके पर पहुंचे। हम लोगों ने देखा कि राजधानी ही नहीं आस-पास के शहरों से कई महिला संगठन अपने साथियों के साथ इंडिया गेट पर विरोध करने के लिए जुटे थे। वे लोग दिल्ली पुलिस के साथ सरकार के खिलाफ भी नारेबाजी कर रहे थे। लगभग आधा दिन गुजर चुका था। हर तरफ लोग अपने-अपने तरीके से टोलियां बना कर लड़की को इंसाफ दिलाने के लिए सरकार और पुलिस से गुहार लगा रहा था।

तभी अचानक कहीं से आवाज आई कि संसद भवन के पास महामहिम बुला रहे हैं। फिर क्या था लोगों ने बिना सोचे-समझे संसद की ओर रुख करना शुरू कर दिया। सैकड़ों की तादात में जब लोगों ने उस तरफ रुख किया, तो दिल्ली पुलिस ने उन पर काबू पाने के लिए आंसू गैस का गोला दाग दिया। यही गोला था जिसके बाद मची अफरा-तफरी ने बाद में बहुत बड़ा ‘तूफान’ खड़ा कर दिया। गोले की धमक ने लोगों को डराने की बजाए उकसाने का काम कर दिया। लोगों का गुस्सा इस कदर फूटा कि शांतिपूर्वक चल रहा विरोध-प्रदर्शन अब उग्र रूप ले चुका था। पुलिस ने तमाम कोशिशों के बाद लोगों को संसद मार्ग के इंडिया गेट की तरफ खदेड़ दिया। ऐसे में अब प्रदर्शनकारियों ने और कड़े तेवरों के साथ दिल्ली पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करनी शुरू कर दी। सैकड़ों की तादात में लोग पुलिस बैरिकेटिंग तोड़कर राष्ट्रपति भवन की ओर रुख करने पर आमादा थे। ऐसे में पुलिस के लिए बड़ी चुनौती पैदा हो गई कि किस तरह इस भीड़ के नियंत्रण में किया जाए। ‘वी वांट जस्टिस-वी वांट जस्टिस’ और ‘दिल्ली पुलिस हाय-हाय दिल्ली पुलिस हाय-हाय’ के नारों के साथ माहौल और गर्म हो गया। हमने वहां देखा कि प्रदर्शनकारियों में कुछ लोगों ने आंसू गैस के जवाब में पुलिस के ऊपर धीरे-धीरे पथराव करना शुरू कर दिया। एक के बाद एक आंसू गैस के गोले दागे जाने की वजह से वातावरण में धुआं ही धुआं फैल गया था। लेकिन, यहा पर पुलिस को बदकिस्मती की वजह से मुंह की खानी पड़ी। हवा का रुख पुलिस की ओर ही था। ऐसे में प्रदर्शनकारियों पर दागे जा रहे आंसू गैस के गोलों का धुआं पुलिस के लिए ही मुसीबत बन गया। पुलिसकर्मी और रेपिड एक्शन फोर्स के जवान वहां से भागने लगे। मैं और मेरे सहयोग अरुण कुमार पांडेय भी इन लोगों के बीच फंस गए।   हम दोनों पहली बार आंसू गैस के प्रकोप का शिकार हुए। हमने महसूस किया कि सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही है। मुंह-नाक-आंखों से पानी बहने लगा। खैर थोड़ी ही देर बाद आंसू गैस का असर कम होने लगा।
देश की राजधानी का सबसे सुरक्षित जोन राजपथ पर इस तरह का दृश्य देखकर एक बार तो मेरे रोंगते ही खड़े हो गए। मेरे मन में सवाल चल रहा था इस वक्त इस घटना को न सिर्फ देश बल्कि विश्व का मीडिया कवर कर रहा है। देश की इज्जत अब तार-तार हो गई। लोगों ने प्रदर्शन और विरोध करने की सारी सीमाएं तोड़ दीं। मैंने यह भी सोचा कि अब इतिहास में दर्ज होते इस काले दिन का मैं भी साक्षी हो गया। बहरहाल, भारी नारेबाजी और पुलिस के ऊपर पथराव की गति और तेज हो गई। प्रदर्शनकारियों की तरफ से आ रहे पत्थरों से कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। किसी के सिर से तो किसी के नाक से खून बह रहा है। स्थिति को काबू में करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोलों के साथ पानी की बौछारें भी शुरू कर दीं। एक वाटर कैनन खाली होकर वापस चली गई। ऐसे में प्रदर्शनकारियों का तो मानो मनोबल बढ़ गया। विरोध और उग्र रूप लेने लगा। थोड़ी देर में मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों को खबर मिली कि प्रदर्शनकारियों ने दो गाड़ियों में आग लगा दी है। इस वहां मौजूद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर स्थिति को काबू में करने का दबाव और अधिक बढ़ गया।
थोड़ी ही देर में देखा कि एक न्यूज एजेंसी के फोटो ग्राफर के सिर में पत्थर लगने से वह गंभीर रूप से घायल हो गया। पुलिस अधिकारियों के ऊपर एकाएक दबाव और बढ़ने लगा। ऐसे में मैं उन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का नाम नहीं लूंगा, जिनके बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि स्थिति को काबू में करने के लिए सख्म कदम उठाने होंगे। वहां मौजूद में पुलिस अधिकारियों को एलआईयू के कर्मचारी ने बताया कि ‘सर अभी लाठी चार्ज मत करना, आगे लड़कियां और महिलाएं काफी संख्या में हैं’। उस समय तो पुलिस ने कोई सख्त कदम नहीं उठाए। लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज हुए पथराव ने पुलिस को उकसा दिया। उसके बाद पुलिस को आदेश मिला कि किसी भी तरह से इंडियागेट परिसर को खाली कराया जाए। बस, फिर क्या था पुलिस और आरएएफ के जवानों ने आंव देखा न तांव। एक सिरे से लोगों को खदेड़ना शुरू कर दिया। इसमें कई छोटे बच्चों, युवतियों, महिलाओं और बुजुर्ग लोगों को भी पुलिस ने नहीं बख्शा। हर किसी पर लाठी भांज कर पुलिस घंटे भर में ही इंडिया गेट परिसर खाली करा दिया।
ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि दिल्ली पुलिस द्वारा राजपथ पर किया लाठी चार्ज क्या वाकई में जायज था। इसी को लेकर दिल्ली पुलिस सवालों के घेरे में हैं। अदालत ने पुलिस को फटकार लगाकर पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है। देश भर में इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस की चौंतरफा निंदा हो रही है। लोग मांग कर रहे हैं कि इस घटना में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। बहरहाल, मामला अब अदालत में है, पुलिस को अपनी दलील रखनी है। आगे का निर्णय तो कोर्ट के हाथों में है कि वह क्या फैसला करता है?

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