यह सामग्री प्रथम प्रवक्ता हिंदी पत्रिका के 16 से 31 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित हो चुकी है।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था संक्रमण के दौर में है। दो ही साल हुए, माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव किये गये। सतत एवं समग्र मूल्यांकन प्रणाली(सीसीई) के तहत बोर्ड परीक्षा को वैकल्पिक बनाने के अलावा मूल्यांकन के लिए ग्रेडिंग की व्यवस्था लागू कर दी गयी। इस बदलाव का नफा नुकसान का पता अभी तक नहीं चल पाया है कि उच्च शिक्षा की गाड़ी भी परिवर्तन-मार्ग की ओर मोड़ दी गयी है। मौजूदा उच्च शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन की कवायद शुरू हो गयी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय(एमएचआरडी) ने मेटा यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट को मंजूर कर इसे लागू करने का जिम्मा कुछ चुनिंदा उच्च शिक्षण संस्थानों को सौंप दिया है। कहा जा रहा है कि मेटा यूनिवर्सिटी कांसेप्ट मौजूद शिक्षा व्यवस्था के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेगी। इससे मौजूदा व्यवस्था को एक नयी दिशा एवं दशा देगी। इस संदर्भ में इसे बदलाव की ऐतिहासिक पहल बताया जा रहा है। हांलाकि शिक्षकों का एक तबका शिक्षा का असफल अमेरिकी मॉडल बताकर इसकी आलोचना भी कर रहा है। बदलाव के नाम पर किया जा रहा यह प्रयोग कितना कामयाब और कारगर साबित होगा,यह तो वक्त ही बतायेगा। लेकिन देश के नामी गिरामी शिक्षण संस्थानों को इस प्रोजेक्ट से जोड़कर सरकार यह साफ कर देना चाहती है कि यह बदलाव होेकर रहेगा।
मेटा यूनिवर्सिटी भारतीय छात्रों और यहां तक की शिक्षकों के लिए बिल्कुल नयी संकल्पना है। इसे लेकर छात्रों और शिक्षकों में जिज्ञासा पैदा हुई है। दरअसल यह अमेरिका के नामी शिक्षण संस्थान मैसाचुसेस्ट इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी(एमआईटी) की संकल्पना है। छ: साल पहले वहां इसे वर्चुअल मेटा यूनिविर्सिटी कांसेप्ट के तौर पर लागू किया गया। लेकिन वहां यह सफल नहीं रही। अब भारत सरकार इसे अपना रही है। एमएचआडी ने मेटा यूनिविर्सिटी संकल्पना की परियोजना को मंजूरी दे दी है। इसे पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर देश के दो हिस्सों के नामी शिक्षण संस्थानों में लागू किया जा रहा है। पूर्वी भारत में पश्चिम बंगाल के जाधवपुर विश्वविद्यालय और पश्चिमी भारत में डीयू को नोडल सेंटर बनाया गया है। जाधवपुर विवि के साथ कलकत्ता विश्वविद्यालय और आईआईएम(कलकत्ता) का नेटवर्क और डीयू के साथ जामिया मिल्लिया इस्लामिया,जेएनयू तथा आईआईटी-दिल्ली का नेटवर्क बनाया गया है। डीयू इसके तहत मास्टर इन मैथेमेटिकल एजुकेशन तथा जामिया पीजी डिप्लोमा इन पब्किल हेल्थ नामक कोर्स करने की तैयारी में हैं। आईआईटी-दिल्ली इसके तहत जलवायु परिवर्तन में कोर्स लाने की तैयारी कर रहा है। डीयू और जामिया में सारी तैयारियां मुकम्मल हो गयी हैं,उम्मीद है कि अगले साल से कोर्सेज शुरू हो जाएंगे। डीयू कह रहा है कि शुरू किये जाने वाले मास्टर इन मैथेमेटिकल एजुकेशन नामक कोर्स करने के बाद छात्र शिक्षक बनने की पात्रता हासिल कर लेंगे। इस कोर्स से शिक्षा शास्त्र में नया मोड़ आयेगा। यह कोर्स कर निकलने वाले छात्र नये एवं प्रभावी तरीके से छात्रों को पढ़ा पायेंगे। कुल मिलाकर इसे भारत में होने वाला अनोखा प्रयोग और दुनिया की पहली ऐसी संकल्पना बताया जा रहा है,जो यूनिवर्सिटी कैंपस और कोर्सेज के दायरे को तोड़ कर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने की आजादी देगी। विश्वविद्यालयों का ऐसा एक नेटवर्क तैयार किया जाएगा,जो विभिन्न विषयों में साझा पाठ्यक्रम चलायेंगे। अपने शैक्षिक एवं शैक्षणिक संसाधनों की लेन-देन आपस में करेंगे,जिसका पूरा लाभ छात्रों को मिलेगा। जानकारों का कहना है कि अब छात्र विज्ञान के साथ साहित्य ,गणित के साथ इतिहास,आयुर्विज्ञान के साथ भूगोल और ऐसे ही किसी विषय के साथ कोई विषय एक ही प्रोग्राम में पढ़ सकता है। किसी एक संस्थान में दाखिल छात्र को किसी अन्य संस्थान में अच्छे कोर्स की पढ़ाई वहां की अच्छी फैकेल्टी से करने की आजादी होगी। मसलन आईआईटी दिल्ली में बीटेक का छात्र पश्चिम बंगाल की जाधवपुर यूनिवर्सिटी से प्रचीन इतिहास की पढ़ाई कर सकेगा। किसी विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षण संस्थान का छात्र देश के किसी विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य,तुलात्मक इतिहास,राजशास्त्र या अन्य विषय का भी अध्ययन करने को स्वतंत्र होगा। एक ही कोर्स के एक या दो सेमेस्टर की पढ़ाई अलग-अलग विश्वविद्यालयों से की जा सकेगी। यह छात्रों पर निर्भर करता है कि उसे किसी विश्वविद्यालय की फैकेल्टी और कहां का कोर्स भाता है। इन पाठ्यक्रमों के प्रश्नपत्र अंक आधारित नहीं बल्कि क्रेडिट पर आधारित होंगे। अलग-अलग संस्थान क्रेडिट ट्रांसफर करेंगे। क्रेडिट ट्रांसफर सिस्टम के तहत मूल्यांकन कर छात्रों को मेटा यूनिवर्सिटी की साझा डिग्री प्रदान की जाएगी। एक ही डिग्री पर उन सभी संस्थानों का नाम होगा,जहां से छात्र पढ़ाई करेंगे। जबकि हमारी मौजूदा व्यवस्था में एक संस्थान का छात्र दूसरे संस्थान में क्लास भी नहीं कर सकता है। एक कोर्स की पढ़ाई पूरी होने के बाद ही कोई दूसरा कोर्स किया जा सकता है। विज्ञान और गणित वर्ग और कला एवं मानविकी वर्ग के छात्र एक साथ देनों वर्ग के विषयों की पढ़ाई नहीं कर सकते। एक छात्र एक ही सत्र में दो संस्थानों की डिग्रियां नहीं ले सकता है। लेकिन नयी संकल्पना इन सभी जटिलताआें को तोड़ देगी। इस संकल्पना का उद्देश्य मल्टी डिसिप्लिनरी लर्निंग के लिए छात्रों को स्वतंत्र करना है। शिक्षा की ऐसी व्यवस्था करना,जिसमें छात्र तकनीकी दक्षता के साथ संवेदना और मूल्य आधारित शिक्षा एक साथ ग्रहण कर सकें। उन्हें ऐसी शिक्षा मिले कि वे अच्छे पैकेज के लिए विदेश जाने की बजाय अपने गांव की गलियों में अच्छे रोजगार की संभावनाएं पैदा कर सकें। इंजीनियरिंग का इस्तेमाल सोशल वर्क में कर सकें,तकनीकी का प्रयोग साहित्य और प्राचीन इतिहास को समझने में कर सकें। अपनी समस्याएं खुद सुलझाने और अपना निर्णय खुद लेने में सक्षम एवं दक्ष हो सकें। इस संकल्पना को शिक्षा में तकनीकी को बढ़ावा देने लिए भी मददगार माना जा रहा है। एक शिक्षक को प्रभावी कम्युनिकेटर बनाने,एक इंजीनियर को समाज की जमीनी हकीकत समझाने,एक गणितज्ञ को भाषा विज्ञान की बारीकियां समझने में भी माहिर करने की जरूरत के तौर पर भी इस संकल्पना को मददगार बताया जा रहा है। यह सुनने में तो एक आसान लग रहा है। लेकिन समझने में उतना ही कठिन है। इसने कई सवाल भी खड़े किये हैं। छात्रों और शिक्षकों के मन में ये सवाल तैर रहे हैं कि क्या डीयू द्वारा एजुकेशन सेक्टर में शुरू किये जाने वाले कोर्स मास्टर इन मैथेमेटिकल एजुकेशन बीएड या एमएड की डिग्री के बराबर होगा और क्या इस कोर्स के छात्रों को शिक्षक बनने की पात्रता हासिल होगी? क्या मौजूद शिक्षा व्यवस्था में बनायी गयी पात्रताएं और मानक आड़े नहीं आयेंगे। क्या साझा डिग्री युजीसी मान्य होगी? विभिन्न सेवाआें के लिए होने वाली प्रतियोगी परीक्षाआें में यह मानी जाएगी? विज्ञान और साहित्य,तकनीकी और इतिहास,गणित और भाषा विज्ञान, वाणिज्य और पत्रकारिता जैसे विषयों की एक साथ पढ़ाई कर छात्र किसी दिशा में जाएंगे? उनका करियर स्कोप और रोजगार की संभावनाएं क्या होंगी। क्या अलग-अलग संस्थानों के फीस स्ट्रक्चचर और हॉस्टल सुविधाआें के खर्च का अतिरिक्त बोझ छात्रों पर नहीं पड़ेगा। डीयू में इस प्रोजेक्ट के हेड प्रोफेसर एमएम चतुर्वेदी का कहना है कि इन सब तरह के सवालों के जवाब भी हैं। लेकिन अभी तक छात्रों के सामने नहीं आये हैं। नया प्रोजेक्ट है,सबकुछ तैयार करने में समय लगेगा। छात्रों को सब सवालों के जवाब भी मिलेंगे। जागरुकता अभियान चलाकर इसकी जानकारियों का प्रसार किया जाएगा। डीयू ने मेटा यूनिवर्सिटी के तर्ज पर मेटा कॉलेज प्रोजेक्ट के तहत इसी सत्र से मानविकी विषयों में बीटेक नामक कोर्स शुरू किया है। छात्रों को इसके बारे में जागरूक करने और उनके तथा उनके अभिभावकों के मन में तैर रहे सवालों के जवाब देने के लिए ओपन डेज और विभिन्न कॉलेजों में गाजरूकता शिविर लगा रहा है। डीयू के डिप्टी डीन(छात्र कल्याण) डॉक्टर गुरप्रीत सिंह टुटेजा का कहना है कि कैंपस और कोर्स की जटिलताओं से निकलने के बाद छात्र अपनी रूचि के विषय अपनी मर्जी के संस्थान में अपनी पसंद के टीचर्स से पढ़ सकेंगे। इससे उन्हें पढ़ाई में संतुष्टी अधिक मिलेगी। प्रतिभा में उभार एवं निखार आयेगा। इससे दक्षता और संवेदना,विश्लेषण और संक्षेपण तथा राइट ब्रेन और लेफ्ट ब्रेन एक साथ जोड़ने में मदद मिलेगी। ऐसे छात्र अपना बेस्ट निकाल सकेंगे। जामिया के कुलपति नजीब जंग का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था में छात्रों को कहीं पसंदीदा संस्थान नहीं मिल पता तो कभी मर्जी का कोर्स मिलने में दिक्कत होती है। लेकिन इसमें उन्हें पूरी आजादी मिलेगी। कई विषयों की साझा जानकारी और अनेक संस्थानों की डिग्री एक साथ मिलेगी। शिक्षण में आजादी से छात्रों में संतुष्टी का भाव होगा और वे अपेक्षाकृत अधिक प्रदर्शन करेंगे। जेएनयू के कुलपति प्रोफेसर सुधीर कुमार सोपोरी ने भी इस प्रोजेक्ट में शामिल होने के साथ पाइलट प्रोजेक्ट के लिए चुने गये एजुकेशन,पब्लिक हेल्थ और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में शोध कार्य्रकमों को संचालित करने की घोषणा की है। हांलाकि इस नयी संकल्पना की आलोचनाएं हो रही हैं लेकिन देश के इन नामी शिक्षण संस्थानों के रूझान और शुरूआती प्रयासों से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि यही नयी संकल्पना अब हमारी उच्च शिक्षा के भविष्य का नक्शा बनायेगी। दशा और दिशा तय करेगी। आलोचनाएं हमारी इस कमजोरी की ओर संकेत कर रही हैं कि आजादी के साढ़े छ: दशक बाद भी हम एक मौलिक शिक्षा नीति बनाने में असफल हैं। लेकिन हमारी जुगाड़ तकनीकी का यह इतिहास है कि ‘हम उधार की जमीन पर अपना मकान खड़ा करने में आगे रहे हैं।’
मेटा यूनिवर्सिटी प्रोजेक्ट हेड(डीयू) प्रोफेसर एम एम चतुर्वेदी से बातचीत-
प्रोजेक्ट की अलोचनाआें के बारे आपकी क्या राय है?
दलीय राजनीति से ग्रसित कुछ वामपंथी शिक्षक ही इसकी आलोचना कर रहे हैं। शिक्षा को राजनीति से दूर रखना चाहिए। बतौर शिक्षक सोचेंगे तो इस संकल्पना की खासियतें उन्हें नजर आयेंगी। देश के बड़े-बड़े संस्थानों की विद्वत परिषदों ने इसकी खासियतों और खामियों को ध्यान में रखकर ही पारित किया होगा। किसी भी अच्छी शुरूआत पर कुछ सवाल उठते ही रहते हैं।
मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की क्या जरूरत है?
इस व्यवस्था में मिलने वाली बीए,एमए की डिग्री का आज कोई मतलब है। इन्हें भी हासिल करने के लिए छात्रों को हर मोर्चे पर कोर्स और कैंपस से संबंधित तमाम जटिलताओं से दोचार होना पड़ता है। कई तरह की बंदिशें झेलनी पड़ती हैं। इन्हें खत्म कर एक ‘कंट्रीवाइड कैंपस’ तैयार करना होगा,जहां छात्र अपनी रूचि के कोर्स और फैकेल्टी का आसानी से चुनाव कर संतुष्टी से पढ़ाई पूरी कर सकें और शैक्षिक संसाधनों का पूरा लाभ उठा सकें।
उच्च शिक्षा का भविष्य किधर जाएगा और क्या गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी?
भविष्य को सही दिशा देने के इस संकल्पना को साकार करना जरूरी है। यह व्यवस्था बूढ़ी हो गयी है। आज युवाआें का दौर बदलाव की जरूरत है। उन्हें आज के मुताबिक ऐसी शिक्षा चाहिए,जिसमें व्यवसायिकता,तकनीकी,प्रबंधन,अभि यांत्रिकी और नैतिकता के साझा तत्व शामिल हों,जो रचनात्मकता को बढ़ावा दे सकें । मेटा यूनिवर्सिटी कांसेप्ट के तहत मल्टी डिसिप्लिनरी लर्निंग इस जरूरत को पूरी करेगी। गुणवत्ता का ग्राफ उठेगा। जब छात्र आजादी से अपनी रूचि की शिक्षा ग्रहण करेंगे तो वे आज की तुलना में अधिक संतुष्ट होंगे। इससे उनकी प्रतिभा निखरेगी,प्रदर्शन स्तर बढ़ेगा और वे समाज के हर क्षेत्र के विकास में बेहतर योगदान कर सकें। यह भारतीय शिक्षा का भविष्य संवारने की पहल है। दावे के साथ कहेंगे कि आज हम जो कर रहे हैं आगे आने वाले दिनों में वही सबको करना पड़ेगा।
तकनीक के साथ साहित्य,गणित के साथ इतिहास और विज्ञान के साथ कला की पढ़ाई अजीब लगती है। इसका क्या मतलब है?
कविता लिखना भी एक तकनीक है। कवि भावि स्थितियों की कल्पना करता है और फिर उस स्थिति,दृश्यों,बिंबों और भावों को शब्द देता है। यह बिना तकनीक के संभव नहीं है। जब बीटेक का छात्र प्राचीन इतिहास पढ़ेगा। समझेगा कि प्राचीन मानव पत्थर के वर्तन,कृषि उपकरण और सुरक्षा एवं शिकार के अनेक तरह के हथियार कैसे बनाते थे। पेड़ों के पत्तों से घर और छाल से वस्त्र कैसे बनाते थे। आर्कियोलॉजी में यही बताया जाता है। प्राचीन और नवीन जानकारियों के समन्वय से आज विकास का वैकल्पि एवं सुरक्षित मार्ग तैयार किया जा सकता है। कॉमर्स के साथ पत्रकारिता पढ़ने वाले लड़का वाणिज्यिक संवाद पर बेहतर नियंत्रण रख सकता है। शिक्षा के साथ तकनीक की पढ़ने वाले छात्र शिक्षा में तकनीकी को बढ़ावा देने में योगदान कर सकता है। आज की पत्रकारिता में विज्ञान और कला का ही समन्वित रूप दिखता है। इसे बढ़ाने की जरूरत है।
डिग्रियों की मान्यता और दो तरह की व्यवस्था में टकराव के भी सवाल उठ रहे हैं। क्या कहेंगे?
ऐसे सवाल उठाने वालों को सोचना चाहिए कि इतना बड़ा प्रोजेक्ट बुनियादी सवालों पर बिना विचार किये तो शुरू नहीं हो सकता है। डिग्रियों की मान्यता के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोगा,राष्टÑीय अध्यापक शिक्षा परिषद,मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया,आॅल इंडिया तकनीकी शिक्षा परिषद जैसी नियामक निकायों से बातचीत जारी है। युजीसी और एनसीटीई के साथ कई बैठकें हो चुकी हैं। ये दोनों पात्रता शर्ताें में जरूरी संशोधन के लिए कदम उठा रहे हैं। अभी तो यह पॉइलट प्रोजेक्ट है। आगे जैसी समस्या पैदा होगी,निदान ढूंढा जाएगा। नयी व्यवस्था को सूचारू,स्थायी बनाने और उसे गति देने में समय लगता है।
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