शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2012

अन्ना के खिलाफ सियासत! या ‘साजिश’!

अन्ना हजारे स्वास्थ्य लाभ और नेचुरोपेथी के लिए अब बेंगलुरु पहुंच गए हैं। दिल्ली में वह महज तीन दिन में ठीक हो गए, जबकि पुणे के संचेती अस्पताल में एक महीने में उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। उलटा बिगड़ती गई। तो ऐसा क्या हुआ। अन्ना ने खुद अपने स्वास्थ्य के बारे में क्या कहा और यह पूरा माजरा था क्या। पढ़िए इस राज की परत-दर-परत खोलती पुण्य प्रसून बाजपेयी की यह रिपोर्ट

क्या पुणे के संचेती अस्पताल में अण्णा हजारे को भविष्य में आंदोलन ना कर पाने की स्थिति में लाने की तैयारी की जा रही थी। क्या राजनीतिक तौर पर संचेती अस्पताल को इस भरोसे में लिया गया कि अगर वह अण्णा हजारे को पांच राज्यों में चुनाव के दौरान मैदान में ना उतरने देने की स्थिति ला सकता है तो अस्पताल चलाने वालों का ख्याल रखा जायेगा। क्या पुणे के एक व्यवसायी को भी राजनीतिक तौर पर इस भरोसे में लिया गया कि वह अण्णा से अपनी करीबी का लाभ कांग्रेस को पहुंचाये तो सरकार उसे भी इनाम देगी। क्या अण्णा के सहयोगियों को भी सुविधाओं से इतना भर दिया गया कि वह भी अण्णा को उसी राजनीति के हाथ का खिलौना बना बैठे जिस राजनीति के खिलाफ अण्णा संघर्ष कर रहे थे। यह सारे सवाल अगर रालेगण सिद्दी से लेकर पुणे और मुंबई में अण्णा आंदोलन से जुडे लोगों के बीच घुमड़ रहे हैं तो दिल्ली से सटे गुडगांव के वेदांता अस्पताल से इसके जवाब भी निकलने लगे है। यह सब कैसे और क्यो हुआ। इसे जानने से पहले यह जरुरी है कि इस खेल की एवज में पहली बार क्या क्या हुआ उसकी जानकारी ले लें। पहली बार अण्णा रालेगण के अपने सहयोगी के बिना ही दिल्ली ईलाज के लिये पहुंचे। पहली बार संचेती अस्पताल के कर्ता-धर्ता कांति लाल संचेती को सीधे पद्म विभूषण से नवाज दिया गया। पहली बार अण्णा के करीबी पुणे के व्यवसायी अभय फिदौरिया के भाई काइनेटिक के चैयरमैन अरुण फिरदौरिया को पदमश्री से नवाजा जायेगा। 74 बरस की उम्र के जीवन में पहली बार अण्णा ने यह महसूस किया कि संचेती अस्पताल में ईलाज के दौरान उनसे खुद उठना -बैठना नहीं हो पा रहा है। 
Anna Hazare being examined by a doctor at a hospital in Pune on Saturday. The social activist was discharged on Sunday morning.
दरअसल पिछले दो दिनो से गुडगांव के मेंदाता में ईलाज कराते अण्णा के शरीर से करीब तीन किलोग्राम पानी बाहर निकला है। और दो दिन के भीतर ही अण्णा अपना काम खुद कर सकने की स्थिति में आ गये है और मंगलवार को अण्णा को आईसीयू से सामान्य कमरे में शिफ्ट भी कर दिया गया। लेकिन इससे पहले पुणे के संचेती अस्पताल में नौ दिन { 31 दिसबंर 2011 से 8 जनवरी 2012 } भर्त्ती रहे अण्णा को बीते महिने भर से जो दवाई दी जा रही थी वह इलाज से ज्यादा बीमार करने की दिशा में किस तरह बढ़ रही थी य़ह अस्पताल की ही ब्लड और यूरिन रिपोर्ट से पता चलता है । संचेती अस्पताल में 6 जनवरी को अण्णा की ब्लड / यूरिन की रिपोर्ट [ ओपीडी / आईडीनं. 1201003826 ] में सब कुछ सामान्य पाया गया । लेकिन हर दिन जिन आठ दवाईयों को खाने के लिये दिया गया उसमे स्ट्रीआईड का ओवर डोज है। और एंटीबायटिक की चार दवाईयां इतनी ज्यादा मात्रा में शरीर पर बुरा असर डाल सकती है कि किसी भी व्यक्ति को इसे खाने के बाद उठने में मुश्किल हो। असल में ईलाज ऐसा क्यो किया जा रहा था इसका जवाब तो किसी के पास नहीं है लेकिन इस इलाज तो गुडगांव के मेंदाता में तुरंत बंद इसलिये कर दिया क्योकि यह सारी दवाईया अण्णा हजारे के शरीर में घीमे जहर का काम कर रही थीं।
खास बात यह भी है कि संचेती अस्पताल की डिस्चार्ज रिपोर्ट में डां कांति लाल संचेती के बेटे डा पराग लाल संचेती के हस्ताक्षर के साथ यह लिखा गया कि एक महिने यानी 8 फरवरी तक अण्णा हजारे को सिर्फ आराम ही करना है । कोई काम नहीं करना है । खासकर अस्पताल छोडते वक्त 8 जनवरी को अण्णा बजारे को संचेती अस्पताल के डाक्टर ने यह भी कहा कि लोगो से मिलना-जुलना बंद रखे । 
लेकिन अण्णा का इलाज बदला और अन्ना दो दिन में कासे ठीक हुये । पेट से लेकर मुह, हाथ , पांव की सूजन खत्म हुई तो 31 जनवरी की सुबह 10 बजे पुणे से डा पराग संचेती अण्णा से मिलने गुडगांव के मेंदाता अस्पताल आ पहुंचे । करीब एक घंटे तक जब उन्होंने आईसीयू के कमरे में अकेले बैठकर अपने संबंधों का रोना रोया और पुणे से लेकर मुंबई तक संचेती अस्पताल पर लगते दाग का दर्द बताया । अपने पिता कांति लाल संचेती को पद्म विभूषण सम्मान पर उठती अंगुलियों का जिक्र किया तो अण्णा हजारे ने उन्हे माफ करने के अंदाज में सबकुछ भूल जाने को कहा । तो डां पराग संचेती ने इस बात पर जोर दिया जब तक अण्णा अपने हाथ से लिखकर कोई बयान जारी नहीं करते तबतक उन्हें मुश्किल होगी । ऐसे में अण्णा ने लिखा, "मुझे नही लगता कि दवाईया गलत नियत से दी गई थी । शायद मेरा शरीर उसे बर्दाश्त नहीं कर पाया । और डां संचेती के पद्मविभूषण को मेरे ईलाज से जोड़ना गलत है। " सवाल है अण्णा का यह बयान कुछ दूसरे संकेत भी देता है। क्योकि अण्णा पहली बार गुडगांव के अस्पताल में बिना किसी रालेगण के सहायक के हैं। जबकि बीते एक बरस के दौरान जंतर मंतर हो या रामलीला मैदान या फिर मुंबई । उनके साथ रालेगण के उनके सहयाक सुरेश पठारे हमेशा रहे। लेकिन इसी दौर में अण्णा के करीबियो के पास व्लैक बेरी और एप्पल के आई फोन समेत बहुतेरी ऐसी सुविधायें आ गयी जिसकी कीमत लाख रुपये से ज्यादा की है। यह सुविधा रालेगण में अण्णा को घेरे कई सहायकों के पास है। और अण्णा के रालेगण में रहने के दौरान पुणे के व्यवसाय़ी की पैठ यह सबसे ज्यादा हो गयी। जबकि इस दौर में पुणे से लेकर मुंबई तक में चर्चा यही है कि पुणे के जिस व्यवसायी को पदमश्री और जिस डाक्टर को पदम-विभूषण मिला उनका नाम इससे पहले पुणे के सांसद सुरेश कलमाडी ने प्रस्तावित किया था लेकिन कलमाडी के दागदार होने के बाद इनकी फाइल बंद कर दी गयी लेकिन जैसे ही अण्णा का संबंध इनसे जुडा तो सरकारी चौसर पर दोनो ने अपने अपने संबंधो की सौदेबाजी के पांसे फेंक कर सम्मान पा लिया।

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