परछाईं
समाज की परछाईं है, देखिए।
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सियासत
रविवार, अप्रैल 22, 2012
वह
उनका कचरा
उसकी रोटी
दिनभर चुनती
रात को सोती
ऐसी है व्यवस्था
या किस्मत ही फूटी
सोच-सोच के वह है रोती
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