मंगलवार, फ़रवरी 03, 2009

पब पर सियासी परदा

पब कल्चर पर हमले की घटना पर बीते दिनों भारत के विधि मंत्री हंस राज भरद्वाज ने जो बयान दिया है। उसका मतलब तो यही निकलता है कि अबतक भारत में पब कल्चर जैसी कोई चीज नहीं है लेकिन यदि अब ऐसी कोई चीज पनप रही है तो उसे बकायदे हवा पानी दिया जाना चाहिए। क्यों कि यह देश सबका है। पहला सवाल तो यह कि जब यहाँ पब कल्चर जैसी कोई चीज है ही नहीं तो भगवा तत्वों ने हमला किस पर किया? यदि उनने नशेमनों पर हमला किया तो गोवा और पंजाब में क्यों नहीं किया? क्या यहाँ नशेमन नहीं होते? यूपी और बिहार में क्यों नहीं ? इन जगहों पर भी तो नशेमन पाए जाते हैं। यहाँ भी बड़े होटलों में शराब और शवाब का तमाशा होता है। लेकिन यहाँ हमला क्यों नहीं हुआ? मंत्री महोदय ने कहा की हमलावरों को यह पता होना चाहिए की पुलिस सरकार की है। इसलिए कोई कानून हाथ में ना ले। यह तो लिंक रोड पर स्पीड ब्रेकर की व्यवस्था किए बिना सड़क पर बहके हुए चालक को लाल बत्ती की धमकी देने वाली बात हुयी। सवाल यह है की क्या पुलिस की धमकी मात्र से समाज को दूषित करने वाले लोगों को रोका जा सकता है ? यदि ऐसा है तो धमकी ठीक है लेकिन फिर क्यों समाज में आर्थिक, राजनीतिक एवं साँस्कृतिक आतंक छाया हुआ है? इस मामले में मैं किसी भगवा तत्त्व का प्रवचन नहीं कर रहा। मैं भी इस चीज को ग़लत मान रहा हूँ लेकिन सियासी नजरिये से नहीं। बल्कि सामाजिक दृष्टि से। क्योंकि जिन लड़कियों को हमारे हिंदू धर्मं में पूजनीय स्थान दिया गया है उनकी पिटाई करके हम अपनी संस्कृति को नहीं बचा सकते। हाँ इतना जरुर है की जो लडकियां स्वतन्त्रता के नाम पर स्वछंदता चाहती हैं उनको रोकना हमारी ड्यूटी भी बनती है। यदि किसी दृष्टी से इस को भी कोई ग़लत मानता है तो मानता रहे। अक्सर हमें ऐसा लगता नहीं की अपने शरीर में बीमारियों के लिए हम ख़ुद जिम्मेदार हैं लेकिन उसकी वजह कहीं न कहीं हम ख़ुद होते हैं। बिमारी जब लाईलाज हो जाती है तो शरीर के अन्य अंगों को बचाने के लिए कम से कम बीमार अंग को तो काटना ही पड़ता है। नारी उत्थान की जहाँ तक बात है। तो अपने उत्थान का अधिकार सबको है लेकिन उत्थान के नाम पर उतान होने वाले समाज को गुमराह करते हैं। सच्चाई यह है की उत्थान के मार्ग पर जो चलता है उसका वजन अपेक्षाकृत ज्यादा हो जाता है , फिर उसको अधिक परिश्रम की जरुरत होती है और अनाप-शनाप कुछ करने का समय ही नहीं मिलता। सार कहें तो समाज, हम जितना सोच रहे हैं उससे कहीं काफी आगे निकल चुका है। जिसकी अगुआई हमारी राजनीत कर रही है। सो राजनेताओं को कौन समझाए?

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