गुरुवार, जुलाई 01, 2010

भय बिन होत न प्रीत

ऐसा लग रहा है,हर दौर कि सच्चाई को बताने वाली इस लाइन का दौर अब खत्म हो चुका है। भय और प्रीत के बीच भाव - सम्बन्ध को हर स्तर पर तोड़ने कि कोशिशें हो रही हैं। ताकि प्रेम पंछियों को शादी से पहले और बाद में सताने वाले किसी भी भय से मुक्ति मिल सके। आनर किलिंग से चिंतित सरकार के कानून मंत्री एम् वीरप्पा मोईली ने पिछले दिनों अपने एक बयान में कोर्ट मैरिज को और आसान बनाने के संकेत दिए। उनके बयान के मुताबिक हिन्दू मैरिज एक्ट में ससोधन का प्रस्ताव है। इसमें कोर्ट मैरिज के लिए दी जाने वाली नोटिस की अवधि को खत्म करने की सिफारिश की गयी है। अपनी मर्जी से शादी करने वालों के सामने किसी तरह कि दिक्कत पेश करने वालों को अपराधिक मामलों के दाएरे में रखा जाएगा। ऐसा करने वालों को सात साल तक की सजा का भी प्राविधान किया जाएगा। सवाल यह है की विवाह सम्बन्धी कानून में संशोधन कर जड़-पकड़ परम्पराओं से मुक्ति पायी जा सकती है? क्या ये कानून कडा देने से लव मैरिज और अंतरजातीय विवाह को अपने संस्कार और खानदानी प्रतिष्ठा के खिलाफ मानने वाले लोगों का मनोबल दब पायेगा? यदि हाँ तो ठीक है। नहीं तो , सरकारी स्तर से ऐसा कोई जागरूकता अभियान चलाये जाने की जरुरत है , जो समाज में उभर रहीं इस तरह की विकृतियों पर काबू पाने में कारगर साबित हो। कानून में तब्दिली से सामाजिक विकृतियों और कुप्रथाओं पर काबू पाने की कई योजनाओं का अनुभव सरकार के पास है। मसलन दहेज़ प्रथा और जनसँख्या नियंत्रण। कानून की कडाई धरी रह गयी। असल में इन विकृतियों और कुप्रथाओं पर अंकुश तब लगा , जब लोग जागरुक हुए। ताजा मामले सरकार जो रुख है, कई मायनों में उचित नहीं लग रहा। प्रीत को बढाने के लिए भय को खत्म किया जा रहा है। भय खत्म होगा। समझदारी कि जरुरत बढ़ेगी। इसके लिए शिक्षा का स्तर अच्छा होना चाहिए। शहरों को छोड़ दें तो गाँव में रहने वाली हमारी ७० फीसदी आबादी में शिक्षा का स्तर क्या है? यह हम खूब जानते हैं। वहाँ प्रेम और जिंदगी से जुड़े विषयों पर संतान और अभिभावक में घोर मतभेद पैदा होगा। एक तरफ अनुभव, दूसरी तरफ जोश ओ जूनून। दोनों के बीच प्रतिष्ठा और प्रेम का वर्चस्व कायम रखने के लिए लड़ाई होगी। इसमें भय कि मध्यस्थता न हो तो परिवार टूटेगा बिखरेगा.

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