शुक्रवार, जनवरी 20, 2012

रुश्दी का विरोध,सरकार और राजनीति

आखिरकार सलमान रुश्दी ने,चाहे जो सोचकर अपना भारत दौरा रद्द कर दिया। यह साफ हो गया कि अब वे जयपुर के लिटफेस्ट (साहित्योत्सव) में नहीं आयेंगे। लेकिन उनके आने पर जितने सवाल खड़े हो सकते थे,उनसे कहीं अधिक सवाल उनके न आने को लेकर खड़े होने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह पैदा हो गया है कि क्या धर्मनिपेक्षता की वैश्विक पहचान रखने वाले भारत में चरमपंथ आज भी इतना हावी है कि उसकी धमकी भरी चेतावनी से सरकार उससे डर जाय? इस डर के मारे किसी व्यक्ति के मानवीय एवं मौलिक अधिकारों के इस्तेमाल तक में बाधा बनकर खड़ी होने के लिए उसे मजबूर होना पड़े? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी लेखक के समर्थन में खड़ी जनता को दरकिनार कर मुट्ठीभर चरमपंथियों की बात मानने के लिए सरकार मजबूर हो जाय? ऐसे और भी कई सवाल हैं।
इनमें से एक सवाल ऐसा है जो पुलिस के खुफिया रिपोर्ट पर शक से पैदा होता है। राजस्थान पुलिस को सूचना मिली थी कि भारत में किराये के हत्यारों से रुश्दी की जान को खतरा है। राजस्थान पुलिस की ओर से इसकी सूचना रुश्दी दी गयी थी,जिसके बाद उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया। यह रिपोर्ट पुलिस का है,जिस अपनी जान-माल की सुरक्षा को लेकर जनता भरोसा करती है और जिसकी जिम्मेदारी ही जनता की सुरक्षा करना है। इसलिए सामान्यत: इस पर शक का सवाल नहीं उठाता। अच्छा है कि इस सूचना ने एक ऐसी जॉन बचा ली है, जिसकी खास जरूरत देश-दुनिया को है। लेकिन यह सूचना तब आयी,जबकि हफ्ते भर पहले से ही भारत में मुस्लिम समुदाय की ओर से रुश्दी के आगमन का विरोध शुरू था। विरोध स्वरूप इस समुदाय ने सरकार को अनर्थ होने का संकेत भी दे दिया था और अवांछित स्थिति से निबटने के लिए तैयार रहने की चेतावनी भी। इसके बाद सरकार ने भी रुश्दी को रोकने का मन बना लिया। जबकि इसके पहले राजस्थान और केंद्र की सरकारें कह रही थीं कि रुस्दी भारतीय मूल के हैं,इसलिए उन्हें वीजा की कोई जरूरत नहीं होगी। वे जयपुर साहित्योत्सव में हिस्सा लेने के लिए भारत आ सकते हैं। लेकिन इसके बाद मुस्लिम विरोध को देखकर राजस्थान की सरकार के संकेत उलट गये। रुश्दी के आगमन का विरोध, सरकारी संकेत और मानवीय एवं लोकतांत्रिक अधिकारों के आपसी टकराव को लेकर बहस छिड़ गयी। कहा जाने लगा कि रुश्दी के खिलाफ मुस्लिम गुस्सा को सरकार राजनीतिक चस्मे से देख रही है। पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए कांग्रेस को एक मुद्दा मिल गया है। यह कांग्रेस के लिए आसमान से गिरे फूल जैसा है। इस फूल में उसे ‘वोट की महक’ आ रही है।
 इसलिए राजस्थान की कांग्रेसी सरकार मुस्लिमों की बात मान रही है। इस आरोप के बाद केंद्र और राजस्थान की सरकारों पर यह दबाव बन गया कि आखिर वे किस तरह से रुश्दी को रोककर मुस्लिमों को खुश करें। चूकि मामला पूरा राजस्थान से जुड़ा था कि इसलिए केंद्र की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने सीधे इस मामले में दखल न देकर राजस्टथा की कांग्रेसी सरकार से ही वह काम करवाने की सोच ली,जो कांग्रेस को अपने राजनीतिक लाभ के लिए करना था। सरकार को मालूम था कि पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों  में मुस्लिमों का भारी वोट हासिल करना है तो रुश्दी को रोककर उन्हें खुश करना होगा। इसी के बाद राजस्थान और महाराष्टÑ पुलिस ने अपना काम किया। यह समझने का विषय है कि इन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें हैं। मामले पर राजस्थान की सरकार पूरी तरह गंभीर है,ऐसे में पुलिस बिना सरकार से विचार विमर्श किये कोई सूचना जाहिर नहीं कर सकती है। यह व्यवहारिक रुप से देखा गया है। फिर भी पुलिस ने सूचना रुश्दी तक पहुंचा दी कि उन्हें भाड़े कि हत्यारों से खतरा है। जाहिर है सरकार को इस बारे में पता होगा। सरकार भीतरिया यह भी सोच रही होगी कि चलो रुश्दी को रोकने का यह बढ़िया बहाना मिल गया। लेकिन सरकार इस सूचना के साथ सामने नहीं आयी। सारा काम पुलिस के हवाले ही कर दिया। यदि पुलिस की ओर से ऐसी सूचना मिले तो कोई भी अपनी जान बचाने के लिए रुश्दी जैसा फैसला कर सकता है। रुश्दी चाहे जो भी सोचें। यहां मुस्लिम समुदाय में उतनी ही खुशी है,जितनी उनके आने की खबर से नाराजगी थी। सरकार भी रुश्दी के न आने के फैसले पर चाहे जैसी प्रतिक्रिया दे, लेकिन चुनाव से ठिक पहले मुस्लिमों की खुशी से उसे भी राजनीतिक खुशी मिली ही होगी। कांग्रेस के लिए रुश्दी का फैसला संयोग बन गया। सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने जिस दिन मुस्लिम मनमोहक चुनावी घोषणापत्र जारी कर मुस्लिमों को यह भरोसा दिलाया कि उनकी पार्टी सत्ता में आयी तो युपी में उन्हें उनकी आबादी के हिसाब से 18 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। संयोग से उसी दिन यह सूचना फैल गयी कि रुश्दी ने भारत दौरा रद्द कर दिया। अब वे जयपुर साहित्योत्व में नहीं आयेंगे। माना कि आज का मुस्लिम धर्म एवं संप्रदाय की कोरी बातों में आने की बजाय विकास की बातों पर अधिक भरोसा करने लगा है। यदि इस लिहाज से देखा जाय तो मुलायम सिंह का आरक्षण देने का वादा रुश्दी के आगमन पर रोक से मुस्लिमों के लिए अधिक अहम है। लेकिन यह भी सही है कि अब उनमें राजनीतिक लॉली पॉप की समझ अधिक हो गयी है। ऐसे   में देश भर में रुश्दी विरोधी मुस्लिम लहर को कांग्रेस द्वारा अंजाम तक पहुंचना भी उनके वोट पर असर डाल सकता है। सवाल यही है कि क्या राजनीति इतनी निर्मम हो गयी है कि कलाकारों और साहित्यकारों को चोट पहुंचाने में उसे लज्जा नहीं आती। कहा तो यह भी जा सकता है कि आज के बाजारू में दौर में लेखक भी पब्लिसिटी चाहता है। सलमान रुश्दी पर शांति से जयपुर साहित्योत्सव में हिस्सा लेकर चले जाने में जितनी सुर्खियां नहीं बनतीं,उससे कहीं अधिक वे विरोध के चलते सुर्खियों में रहे। इसलिए लंबे समय तक विरोध के बाद उन्हें भी न आने का फैसला करने में कोई एतराज ना हो,तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। क्यों कि जो लेखक अपनी कलम से मुस्लिम संप्रदाय की कथित सच्चाई का अनावरण करने की हिम्मत कर सकता है,वह केवल एक देश के मुस्लिमों के विरोध के आगे हथियार डाल देगा, यह आसानी से नहीं सोचा जा सकता। राजस्थान सरकार और  रुश्दी के बीच क्या बातचीत हुई है। यह तो गोपनीय है। लेकिन रुश्दी के आगमन की आस लगाये बैठे आयोजक तो मायूस हुए ही हैं। उनकी मायूसी की कीमत भर जो उन्हें नुकसान पहुंचा है,उसकी भरपायी कैसे होगी। उनका यह सवाल आज भी अपनी जगह खड़ा है कि 2007 में आखिर रुश्दी भारत आये ही थे। तब इतना विरोध क्यों नहीं हुआ और सरकार ने उन्हें क्यों नहीं रोका। उनका यह भी कहना है कि जिन्हें रुश्दी के साहित्य और शब्दों से एतराज है,वे उनका विरोध साहित्य और शब्दों से कर सकते हैं। इसी में बौद्धिक गरिमा है। साहित्य का विरोध सड़कों पर उतर कर किया जाना उचित नहीं है। सरकार को भी यह बात समझनी चाहिए। उनके इस सवाल से सरकार की नीयत पर उंगुली उठती है। एक डर लेखकों में पैदा हुआ है कि क्या किसी सच्चाई पर परदा उठाने की कीमत देश निकाला के रूप में चुकाना पड़ सकता है। रुश्दी लेखक ही है,तश्लीमा नसरीन लेखक ही हैं। यदि लेखकों का ऐसे विरोध होता रहा तो फिर लेखन भी राजनीतिक नफ ा और नुकसान के दायरे में सिमट कर न रह जाय। यह भी एक बड़ा सवाल है।

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