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सोमवार, जनवरी 09, 2012

परछाईं: अन्ना आंदोलन का अवमूल्यन

परछाईं: अन्ना आंदोलन का अवमूल्यन
posted by शशि कान्त त्रिगुण पर 07:55
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होने से अधिक,होने की प्रमाणिकता जरूरी समझी जाने लगी है। मैं आपको अपने बारे में इसलिए बताना चाहता हूं कि मैं हूं। क्यों कि मैं हूं इसलिए मेरा ‘परछाईं’ है। मेरा ‘परछाईं’ मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण है। पेशे से एक पत्रकार हूं। यूनाइटेड भारत और आज अखबार से अलग होने के बाद डीएलए (दिल्ली) से जुड़ चुका हूं। स्वभाव से लेखकीय राह का बेमंजिल मुसाफिर हूं। चूकि मैं दिखाऊ नहीं हूं। इसलिए बिकाऊ भी नहीं हूं। हो सकता है, बाजार की सोच समय के साथ और भी बदल जाय। इसलिए बाजारू सोच से बेफिक्र हूं। मैं आपकी नजरों की गंभीरता में ही अपनी सोच और विचारों की कीमत आंकता हूं।
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