परछाईं
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गुरुवार, फ़रवरी 09, 2012
परछाईं: देवी प्रसाद मिश्र की एक कविता
परछाईं: देवी प्रसाद मिश्र की एक कविता
: बीज मैंने प्लेट में टमाटर के ऐसे टुकड़े देखे जो मैंने पहले कभी नहीं देखे थे मतलब कि ऐसे कि जैसे ताज़ा ख़ून से भरे हों उनका वलय भी बड...
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