जब से सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला आया है, तभी से आपने विभिन्न चैनलों पर“हीरो” के चेहरे से अधिक “विलेन” के चेहरे, बयानों, सफ़ाईयों और प्रेस कॉन्फ़्रेंसों को लगातार सुना होगा। जिस “हीरो” के अनथक प्रयासों के कारण आज सैकड़ों CEOs और नेताओं की नींद उड़ी हुई है, उसके पीछे माइक लेकर दौड़ने की बजाय, मीडिया की“मुन्नियाँ”, और चैनलों की “चमेलियाँ”, अभी भी विलेन को अधिकाधिक फ़ुटेज और कवरेज देने में जुटी हुई हैं। असली हीरो यदि चार लाईनें बोलता है तो उसमें से दो लाइनें सफ़ाई से उड़ा दी जाती हैं, जबकि विलेन बड़े इत्मीनान और बेशर्मी से अपना पक्ष रख रहा है…
बहरहाल, पाठकों ने पिछले 2 दिनों में, “हमने तो NDA द्वारा स्थापित ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति का ही अनुसरण किया है, इसमें हमारी कोई गलती नहीं है…” इस वाक्य का उच्चारण कई बार सुना होगा। जिन मित्रों को इस मामले की पूरी जानकारी नहीं है उनके लिए बात को आसान बनाने हेतु संक्षेप में एक कहानी सुनाता हूँ…
2001 में एक किसान अपने खेत में ढेर सारी गोभी उगाता था, लेकिन उस समय उस गोभी को खरीदकर बाज़ार में बेचने वाले व्यापारी बहुत कम थे और गोभी खाने वाले ग्राहक भी बहुत कम संख्या में थे। किसान ने सोचा कि गोभी तो बेचना ही है, फ़िलहाल“पहले आओ, पहले पाओ” के आधार पर जो व्यापारी मिले उसे औने-पौने भावों में गोभी बेच देते हैं… यह सिलसिला 2-3 साल चला।किसान की मौत के बाद उसका एक नालायक बेटा खेत पर काबिज हो गया। 2008 आते-आते उसके खेत की गोभियों की माँग व्यापारियों के बीच जबरदस्त रूप से बढ़ गई थी, साथ ही उन गोभियों को खाने वालों की संख्या भी लगभग दस गुना हो गई। ज़ाहिर है कि जब गोभियों की माँग और कीमत इतनी बढ़ चुकी थी, तो उस नालायक कपूत को उसके अधिक भाव लेने चाहिए थे, लेकिन असल में किसान का वह बेटा “अपने घर-परिवार” का खयाल रखने की बजाय, एक “पराई औरत के करीबियों” को फ़ायदा पहुँचाने के लिए, गोभियाँ सस्ते भाव पर लुटाता रहा। सस्ते भाव में मिली गोभियों को महंगे भाव में बेचकर व्यापारियों, करीबियों और पराई औरत ने बहुत माल कमाया और उसका बड़ा हिस्सा इस नालायक को भी मिला…। लेकिन उस कपूत को कौन समझाए कि जिस समय किसान “पहले आओ पहले पाओ” के आधार पर गोभी बेचता था वह समय अलग था, उस समय गोभी इतनी नहीं बिकती थी, परन्तु यदि कपूत को अपने घर-परिवार को खुशहाल बनाने की इतनी ही चिंता और इच्छा होती तो वह उन गोभियों को ऊँचे से ऊँचे भाव में नीलाम कर सकता था… ज्यादा पैसा परिवार में ला सकता था…।
बहरहाल ये तो हुई कहानी की बात… माननीय “कुटिल” (सॉरी कपिल) सिब्बल साहब ने कहा है कि “सारा दोष ए राजा का है…हमारी सरकार का कोई कसूर नही…”। इस दावे से क्या हमें कुछ बातें मान लेना चाहिए? जैसे –
1) ए राजा ने अकेले ही पूरा घोटाला अंजाम दिया…? पूरा पैसा अकेले ही खा लिया? कांग्रेस के “अति-प्रतिभाशाली” मंत्रियों को भनक भी नहीं लगने दी?
2) चिदम्बरम साहब अफ़ीम के नशे में फ़ाइलों पर हस्ताक्षर करते थे…?
3) प्रधानमंत्री कार्यालय नाम की चिड़िया, पता नहीं क्या और कहाँ काम करती थी…?
4) जो सोनिया गाँधी एक अदने से राज्यमंत्री तक की नियुक्ति तक में सीधा दखल और रुचि रखती हैं, वह इतनी भोली हैं कि इतने बड़े दूरसंचार स्पेक्ट्रम सौदे के बारे में, न कुछ जानती हैं, न समझती हैं, न बोलती हैं, न सुनती हैं?
वाह… वाह… वाह… सिब्बल साहब, क्या आपने जनता को (“एक असंसदीय शब्द”) समझ रखा है? और मान लो कि समझ भी रखा हो, फ़िर भी जान लीजिये कि जब जनता “अपनी वाली औकात” पर आती है तो बड़ी मुश्किल खड़ी कर देती है… साहब!!!
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जिन पाठकों ने 2G Scam से सम्बन्धित मेरी पोस्टें नहीं पढ़ी हों, उनके लिए दोबारा लिंक पेश कर रहा हूँ, जिसमें आपको डॉ स्वामी द्वारा कोर्ट में पेश किए गये कुछ दस्तावेजों की झलक मिलेगी… जिनकी वजह से चिदम्बरम साहब का ब्लडप्रेशर बढ़ा हुआ है…
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