नई दिल्ली। भारत के इस दावे का अमेरिका ने अनेक बार समर्थन किया है कि पाकिस्तान की धरती से आतंक को बढ़ावा मिल रहा है। पाक जमीन पर नापाक इरादे की फैक्ट्री लगी हुई है,जहां आतंकियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन दिल्ली मैग्नेट बम धमाके में कोई साक्ष्य यदि हिजबुल्लाह के खिलाफ मिल भी जाता है,तो भारत यह कैसे कह देगा कि इस घटना में ईरान का हाथ है? जबकि इजरायल, अमेरिका समेत यूरोपीय संघ भारत पर लगातार यह दबाव बना रहे हैं कि वह भी ईरान के खिलाफ अभियान में शामिल हो। ताकि इरान को अंतर्राष्टÑीय मंच पर ‘नंगा’ किया जा सके। भारत को दिल्ली के मैग्नेट बम धमाके में हिजबुल्लाह की भूमिका का संकेत करने से पहले ईरान से अपने सांस्कृति, व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों को देखना होगा। भारत यह देख भी रहा है,इसलिए पश्चिीमी ‘मित्रों’ के दबाव में आकर एक अरबी ‘मित्र’ के खिलाफ कुछ बोलने से परहेज करते हुए भारत ने फिलहाल जांच को अंजाम तक पहुंचाने की बात लगातार र रहा है
यह सही है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम विश्व शांति व्यवस्था में खलल का एक संकेत है। ईरान ने हाल ही में अपने रिएक्टर में परमाणु र्इंधन रॉड्स को स्थापित किये जाने का प्रदर्शन किया है। ईरानी मुखिया महमूद अहमदी नेजाद द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों को सरकारी संचार माध्यमों पर प्रदर्शन करने का मतलब उनके लिए कुछ भी हो। लेकिन यह पश्चिमी देशों को चिढ़ाने के लिए काफी है। इजरायल की तेहरान से चिढ़ पुरानी है। ऐसे में दोनों देशों के बीच पैदा हुई खटास अब दोनों द्वारा एक दूसरे पर हमले की हद तक पहुंच गयी है। वैसे भी ईरान कई दफा अरब दुनिया के नक्शे से इजरायल का नामोनिशान मिटा देने की धमकी दी है। अब जब इजरायल को मौका मिला है,तो वह अपना काम कर रहा है। पश्चिमी देशों को तो उसने लामबंद कर लिया है। लेकिन भारत अभी उस लामबंदी में शामिल नहीं हुआ है। भारत ईरान के खिलाफ या इजरायल के पक्ष में कुछ बोलने से पहले अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ तथा ईरान के साथ अपने अनेक प्रक ार के संबंधों को देख रहा है। ईरान भारत को उसकी जरूरतों का 12 प्रतिशत र्इंधन की आपूर्ति करता है। इसके अलावा ईरान से भातर के सांस्कृतिक संबंध भी हैं। हाल ही में ईरान का एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भारत में र्इंधन की कीमतों और उसक ी पेमेंट पर चर्चा करने आया था। अब भारत का एक प्रतिनिधिमंडल इस महीने के अंत तक इसी सिलसिले में ईरान का दौरा करने वाला है। लेकिन इसके पहले ही अमेरिका ने यह कह दिया है कि भारत को ईरान के साथ बढ़ते अपने संबंधों पर फिर से विचार करना चाहिए। उसे ऐसे हालात में ईरान में अपन प्रतिनिधिमंडल भेजने के फैसले पर भी विचार करना चाहिए,जबकि पूरी दुनिया के अधिकतर देश ईरान की निंदा कर रहे और उसके खिलाफ सैनिक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। अमेरिका ने भारत से यह भी कह दिया है कि उसे प्रतिनिधिमंडलीय दौरा स्थगित करके ईरान को सबक सीखाना चाहिए। लेकिन अमेरिका की ओर से ऐसा बयान के आने के साथ ही भातर ने यह संकेत दे दिया है कि मैग्नेट बम धमाके में अभी तक हिजबुल्लाह की भूमिका का कोई संकेत नहंी मिला है। भारतीय जांच एजेंसियों की नजर अब पूरी तरह से बांग्लादेश से आने वाली उन दो फोन कॉल्स पर टिक गयी है,जो धमाके के एक हफ्ते पहले आयी और धमाके के तुरंत बाद आयीं थी। इससे ईराजयल को एक तरह का संकेत दिया गया है कि उसके दबाव में हम यह नहीं कह देंगे कि इस घटना में ईरान का हांथ है। इजरायल,थाईलैंड,जार्जिया की घटना के हवाले बार-बार यह कह रहा है कि नई दिल्ली के धमाके में भी ईरान का हांथ था और इसके सबूत उसके पास हैं। लेकिन भारत की इस बात पर बल दे रहा है कि यदि ईरानी खुफिया एजेंसी ‘मोशाद’ को पता था तो उसने पहले ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से यह सूचना साझा क्यों नहीं किया। इधर ईरान पर पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव और हमले की आशंका के बीच पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भी त्रिपक्षीय शिष्टमंडलय वार्ता के बाद संकल्प पारित किया है कि वे अपनी ओर से ईरान की पूरी सुरक्षा करेंगे। ईरान पर हमले के लिए वे अपने इलाकों को इस्तेमाल नहीं होने देंगे। उन्होंने यहां तक कहा है कि वे आपसी संबंधों में बाहरी देशों का दखल कत्तई बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह संकल्प भी भारत के कुटनीतिक माथापच्ची को और बढ़ा दिया है। क्यों कि जहां पाकिस्तान भारत को पड़ोसी मुल्क है तो अफगानिस्तान को सजाने संवारने का जिम्मा भारत ने पहले से ही उठाया हुआ है। हांलाकि भातर ने ईरान के मनमाफिक एटमी कार्यक्रम के खिलाफ तीन बार मत दिया है। लेकिन इस बार क्या वह अपना विरोध दोहरा पायेगा। ऐसे समय में जब तेहरान इस तनाव और चिंता की घड़ी में अपने मित्रों को परख रहा है और सहानुभूति की तलाश में है। सभी देशों की भूमिका को गंभीरता से देख रहा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद में ईरान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई का प्रस्ताव लाने का ऐलान कर दिया है। लेकिन सवाल है कि क्या यह प्रस्ताव पारित हो पायेगा। रूश और चीन इस प्रस्ताव के पक्ष में अपना मत देंगे। अमेरिका,ब्रिटेन और फ्रांस इजरायल के पक्ष में खड़े हैं तो ईरान को चीन,रूश और भातर से उम्मीदें हैं। यदि चीन के साथ रूश भी ईरान के खिलाफ नहीं गया तो क्या भातर अमेरिका के साथ अपने संबंधों की बेदी पर ईरान के साथ अपने सांस्कृति और व्यापारिक संबंधों की बलि दे देगा। यह सही है कि ईरान मनमाने तरीके से अपने परमाणु कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रहा है। लेकिन यह भी उतना ही यह भी सही है कि इजरायल कम नहीं है। अरब वर्ल्ड में इजरायल की दादागिरी को दुनिया ने देखा है। इन सच्चाइयों को भारत भी समझता है। वह भी शक्ति संतुलन में अपनी जगह तलाश रहा है। ऐसे में उसकी ओर से ईजरायल या ईरान में से किसी एक का फट से समर्थन कर देना बड़ा ही मुश्किल है।
यह सही है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम विश्व शांति व्यवस्था में खलल का एक संकेत है। ईरान ने हाल ही में अपने रिएक्टर में परमाणु र्इंधन रॉड्स को स्थापित किये जाने का प्रदर्शन किया है। ईरानी मुखिया महमूद अहमदी नेजाद द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों को सरकारी संचार माध्यमों पर प्रदर्शन करने का मतलब उनके लिए कुछ भी हो। लेकिन यह पश्चिमी देशों को चिढ़ाने के लिए काफी है। इजरायल की तेहरान से चिढ़ पुरानी है। ऐसे में दोनों देशों के बीच पैदा हुई खटास अब दोनों द्वारा एक दूसरे पर हमले की हद तक पहुंच गयी है। वैसे भी ईरान कई दफा अरब दुनिया के नक्शे से इजरायल का नामोनिशान मिटा देने की धमकी दी है। अब जब इजरायल को मौका मिला है,तो वह अपना काम कर रहा है। पश्चिमी देशों को तो उसने लामबंद कर लिया है। लेकिन भारत अभी उस लामबंदी में शामिल नहीं हुआ है। भारत ईरान के खिलाफ या इजरायल के पक्ष में कुछ बोलने से पहले अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ तथा ईरान के साथ अपने अनेक प्रक ार के संबंधों को देख रहा है। ईरान भारत को उसकी जरूरतों का 12 प्रतिशत र्इंधन की आपूर्ति करता है। इसके अलावा ईरान से भातर के सांस्कृतिक संबंध भी हैं। हाल ही में ईरान का एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल भारत में र्इंधन की कीमतों और उसक ी पेमेंट पर चर्चा करने आया था। अब भारत का एक प्रतिनिधिमंडल इस महीने के अंत तक इसी सिलसिले में ईरान का दौरा करने वाला है। लेकिन इसके पहले ही अमेरिका ने यह कह दिया है कि भारत को ईरान के साथ बढ़ते अपने संबंधों पर फिर से विचार करना चाहिए। उसे ऐसे हालात में ईरान में अपन प्रतिनिधिमंडल भेजने के फैसले पर भी विचार करना चाहिए,जबकि पूरी दुनिया के अधिकतर देश ईरान की निंदा कर रहे और उसके खिलाफ सैनिक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। अमेरिका ने भारत से यह भी कह दिया है कि उसे प्रतिनिधिमंडलीय दौरा स्थगित करके ईरान को सबक सीखाना चाहिए। लेकिन अमेरिका की ओर से ऐसा बयान के आने के साथ ही भातर ने यह संकेत दे दिया है कि मैग्नेट बम धमाके में अभी तक हिजबुल्लाह की भूमिका का कोई संकेत नहंी मिला है। भारतीय जांच एजेंसियों की नजर अब पूरी तरह से बांग्लादेश से आने वाली उन दो फोन कॉल्स पर टिक गयी है,जो धमाके के एक हफ्ते पहले आयी और धमाके के तुरंत बाद आयीं थी। इससे ईराजयल को एक तरह का संकेत दिया गया है कि उसके दबाव में हम यह नहीं कह देंगे कि इस घटना में ईरान का हांथ है। इजरायल,थाईलैंड,जार्जिया की घटना के हवाले बार-बार यह कह रहा है कि नई दिल्ली के धमाके में भी ईरान का हांथ था और इसके सबूत उसके पास हैं। लेकिन भारत की इस बात पर बल दे रहा है कि यदि ईरानी खुफिया एजेंसी ‘मोशाद’ को पता था तो उसने पहले ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों से यह सूचना साझा क्यों नहीं किया। इधर ईरान पर पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव और हमले की आशंका के बीच पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भी त्रिपक्षीय शिष्टमंडलय वार्ता के बाद संकल्प पारित किया है कि वे अपनी ओर से ईरान की पूरी सुरक्षा करेंगे। ईरान पर हमले के लिए वे अपने इलाकों को इस्तेमाल नहीं होने देंगे। उन्होंने यहां तक कहा है कि वे आपसी संबंधों में बाहरी देशों का दखल कत्तई बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह संकल्प भी भारत के कुटनीतिक माथापच्ची को और बढ़ा दिया है। क्यों कि जहां पाकिस्तान भारत को पड़ोसी मुल्क है तो अफगानिस्तान को सजाने संवारने का जिम्मा भारत ने पहले से ही उठाया हुआ है। हांलाकि भातर ने ईरान के मनमाफिक एटमी कार्यक्रम के खिलाफ तीन बार मत दिया है। लेकिन इस बार क्या वह अपना विरोध दोहरा पायेगा। ऐसे समय में जब तेहरान इस तनाव और चिंता की घड़ी में अपने मित्रों को परख रहा है और सहानुभूति की तलाश में है। सभी देशों की भूमिका को गंभीरता से देख रहा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद में ईरान के खिलाफ सैनिक कार्रवाई का प्रस्ताव लाने का ऐलान कर दिया है। लेकिन सवाल है कि क्या यह प्रस्ताव पारित हो पायेगा। रूश और चीन इस प्रस्ताव के पक्ष में अपना मत देंगे। अमेरिका,ब्रिटेन और फ्रांस इजरायल के पक्ष में खड़े हैं तो ईरान को चीन,रूश और भातर से उम्मीदें हैं। यदि चीन के साथ रूश भी ईरान के खिलाफ नहीं गया तो क्या भातर अमेरिका के साथ अपने संबंधों की बेदी पर ईरान के साथ अपने सांस्कृति और व्यापारिक संबंधों की बलि दे देगा। यह सही है कि ईरान मनमाने तरीके से अपने परमाणु कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रहा है। लेकिन यह भी उतना ही यह भी सही है कि इजरायल कम नहीं है। अरब वर्ल्ड में इजरायल की दादागिरी को दुनिया ने देखा है। इन सच्चाइयों को भारत भी समझता है। वह भी शक्ति संतुलन में अपनी जगह तलाश रहा है। ऐसे में उसकी ओर से ईजरायल या ईरान में से किसी एक का फट से समर्थन कर देना बड़ा ही मुश्किल है।
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