बुधवार, मार्च 14, 2012

खबरों से आगे तेज रफ्तार मीडिया


नई दिल्ली। अध्ययन के विभिन्न अनुशासनों में सूत्र होते हैं,जिनके सहारे छात्र सवालों के जवाब तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। सही सूत्र होने के बावजूद कठिन सवालों के जवाब तक पहुंचने में बहुत देर तक माथापच्ची करनी पड़ती है। लेकिन मीडिया का सूत्र,उसे घंटों का सवाल सेकेंण्डों में हल करा देता है। यहां तक कि जवाब से भी आगे पहुंचा देता है। खबरें पकने तक मीडिया उसे खा चबा जाता है।
               अहम पद नहीं मिलने से नाराज मंत्री जी ने इस्तीफे का मन बना लिया है। लिखा भी है या नहीं, यह सूत्र के हवाले रेस में आगे निकलने की महत्वाकांक्षा में जीने वाले रिपोर्टर के लिए मायने नहीं रखता। तेज-रफ्तार मीडिया में रिपोर्टर की रिपोर्ट भी रफ्तार पकड़ लेती है और मंत्री जी का इस्तीफा भी लगभग करा दिया जाता है। फंसने का कोई डर नहीं होता,सूत्र है ना बड़ा हथियार। मंत्री जी का इस्तीफा नहीं भी होता है,तो अपनी चलायी गयी खबर को बारीकी से काटने के लिए कोई और सूत्र-आधारित तर्क गढ़ लिया जाता है। दरअसल तेज-रफ्तार आज के मीडिया की स्थायी समस्या बन गया है। आगे होने की रेस में कोई पिछड़ना नहीं चाहता है। मीडिया अपने इस भ्रामक लक्ष्य को पाने में यह भी भूल जाता है कि उसका असल मकसद क्या है। इसी भूलावन में वह हर पल कुछ नया खोजने लगता है। कुछ नये की खोज में वह बहुत कुछ महत्वपूर्ण को पीछे छोड़ देता है। समझना हो तो समझिए कि जापान के फुकुशिमा में परमाणु त्रासदी अभी जारी है। दिनोंदिन जहरीला विकरण हजारों मिल के दायरे में आमजन के तन-बदन और प्राकृतिक उपभोग की वस्तुआें में रिस रहा है। इसका भयंकर दूरगामी परिणाम हो सकता है। लेकिन मीडिया को इससे क्या मतलब। जब होगा,तब देखा जाएगा। 86 के रूश में हुई चेर्नाेबिल परमाणु हादसे बड़ा त्रासदी साबित होती जा रही है फुकुशिमा की भयावह घटना। लेकिन घटित होने के बाद ही मीडिया ने इस घटना को सूर्खियों से उतार ही दिया,रोजाना के समाचार एजेंडे से गायब कर दिया। क्यों कि घिसा पिटा नहीं चलाना है। देशी मीडिया की बात करें तो यह और भी आगे है। पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों में युपी को सबसे आगे रखा। खुद युपी की खबर बनने वाली गतिविधियों से आगे रहा। मतदान से पहले ही एक्जिट के आधार ‘परिणाम’ जारी कर दिये। परिणाम कितने जमीनी साबित हुए,ये नेता जी लोग समझते रहें। चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं को कोसते रहें। मीडिया इनसे आगे निकल गया। सपा को स्पष्ट बहुमत मिला। मुख्यमंत्री पद पर बात मुलायम पर अटकी थी। जय हो! मीडिस की। अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री को भ्रामक ताज बहुत पहले ही पहना दिया। हांलाकि देरी से ताज अखिलेश के ही सिर सजा। ताज सजने का इंतजार मीडिया भला क्यों करे। गुंडाराज की चुनौतियों के सामने अखिलेश को खड़ा कर दिया। उत्तर प्रदेश में खबरों से बहुत आगे चल रहा मीडिया उत्तराखंड में भी पीछे नहीं है। हरीश रावत के नाम पर अटकलों के बीच कांग्रेस आला कमान ने चुपके से विजय बहुगुणा को सीएम बनाने की मुहर लगा दी। यहां मीडिया पीछे एक राजनीतिक दल की कार्य संस्कृति की गोपनीय रफ्तार से अपनी रफ्तार नहीं मिला सका। चूक हो गयी। लेकिन इस भरपाई भी मीडिया ने क्या खूब की। विजय बहुगुणा के शपथ लेते हीं,मीडिया नवगठित सरकार पर ही संकट खड़ा कर दिया। हरीश रावत और उनके समर्थकों की बकवासें जुटा लाया। उनके हवाले से बात फैला दी कि यह सरकार अधिक दिन नहीं चलेगी। एनडीटीवी के एक डिबेट में कांग्रेसी दिग्गज कहते रहे कि सरकार चलेगी। मजबूती से चलेगी। पूरे पांच साल चलेगी। हरीश रावत सरकार के साथ चलेंगे। लेकिन टीवी एंकर जबरन यह कहलवाने पर अमादा था कि यह सरकार नहीं चलेगी, ऐसा हरीश रावत कह रहे हैं। यह है हमारा मीडिया इतनी तेज रफ्तार है,इसकी इस रफ्तार में जो चीजें जानने और समझने लायक होती हैं,झटके में पिछे छूट जाती हैं,यही मैं बार-बार कहने की कोशिश कर रहा हूं। आप भी समझने की कोशिश करिए।    

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